कहावत है, ‘‘जैसी माँ वैसी बेटी’’, और आइरीन जोलियट-क्यूरी के मामले में इससे ज़्यादा सच नहीं हो सकता। वह दो नोबेल पुरस्कार विजेताओं, मैरी क्यूरी और पियरे क्यूरी की बेटी थीं, और उन्हें स्वयं 1935 में अपने पति फ्रेडरिक जोलियट के साथ रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार मिला था।
जहाँ उनके माता-पिता को प्राकृतिक रेडियोधर्मिता की खोज के लिए पुरस्कार मिला था, वहीं आइरीन को कृत्रिम रेडियोधर्मिता के संश्लेषण के लिए पुरस्कार मिला था। इस खोज ने विज्ञान के कई क्षेत्रों और हमारे दैनिक जीवन के कई पहलुओं को बदल दिया। कृत्रिम रेडियोधर्मिता का उपयोग आज चिकित्सा, कृषि, ऊर्जा उत्पादन, खाद्य नसबंदी, औद्योगिक गुणवत्ता नियंत्रण आदि में किया जाता है।
आइरीन की खोज ने हमारे प्रायोगिक अध्ययनों की नींव रखी, जिसमें खगोल भौतिकी, ऊर्जा, चिकित्सा और अन्य से संबंधित प्रश्नों को समझने के लिए कृत्रिम रेडियोधर्मिता का उपयोग किया जाता है।
आइरिन क्यूरी का जन्म 1897 में पेरिस में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उन्हें उनके माता-पिता से मिली, जिनमें उनकी मां मैरी क्यूरी प्रमुख थीं। वर्ष 1914 में जब प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हुआ, तो उन्होंने अपनी पढ़ाई रोक दी और अपनी मां के साथ मिलकर युद्धग्रस्त सैनिकों की चिकित्सा के लिए पोर्टेबल एक्स-रे मशीनों के उपयोग में सहयोग किया। इसके साथ ही उन्होंने नर्सों को भी एक्स-रे तकनीक का प्रशिक्षण दिया।
युद्ध के पश्चात क्यूरी ने रेडियम संस्थान में अध्ययन जारी रखा, जहां उनकी भेंट फ्रेडरिक जोलियट से हुई। दोनों ने मिलकर एल्यूमिनियम पर अल्फा कणों की बमबारी करते हुए एक नए रेडियोधर्मी फॉस्फोरस-30 आइसोटोप की खोज की। यह पहली बार था जब किसी कृत्रिम तरीके से रेडियोधर्मी आइसोटोप का निर्माण हुआ।
इस खोज से यह सिद्ध हुआ कि रेडियोधर्मिता केवल प्राकृतिक स्रोतों से नहीं, बल्कि कृत्रिम रूप से भी उत्पन्न की जा सकती है। इस प्रक्रिया को ‘कृत्रिम रेडियोधर्मिता’ कहा गया। इसके परिणामस्वरूप, रेडियोआइसोटोप के चिकित्सकीय अनुप्रयोगों का मार्ग प्रशस्त हुआ, जिनमें कैंसर के निदान और उपचार शामिल हैं।
आइरिन क्यूरी विज्ञान और राजनीति दोनों में सक्रिय रहीं। वर्ष 1936 में उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए देश की अवर सचिव नियुक्त किया गया। उन्होंने फ्रांसीसी परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना में सहयोग दिया और देश के पहले परमाणु रिएक्टर के विकास में योगदान दिया।
रेडियोआइसोटोप आज थायरॉयड रोगों के उपचार, पीईटी स्कैन जैसी तकनीकों और कैंसर की चिकित्सा में व्यापक रूप से प्रयुक्त होते हैं। आई-131 जैसे आइसोटोप, जो कुछ दिनों तक सक्रिय रहते हैं, चिकित्सा विज्ञान में विशेष रूप से उपयोगी पाए गए हैं।
जोलियट-क्यूरी दंपति की खोज के 90 वर्षों के बाद अब लगभग 3,000 कृत्रिम रेडियोआइसोटोप ज्ञात हो चुके हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह संख्या 7,000 तक पहुंच सकती है। मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में हाल ही में स्थापित “फैसिलिटी फॉर रेयर आइसोटोप बीम्स” में वैज्ञानिक अब तक पांच नए आइसोटोप खोज चुके हैं और आगे शोध जारी है।
विभिन्न रेडियोआइसोटोप की विशेषताओं के अनुसार उनका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों—जैसे चिकित्सा, भौतिकी और खगोल विज्ञान—में किया जाता है। वैज्ञानिक अब उन आइसोटोप पर शोध कर रहे हैं जो तारों के भीतरी भागों में मौजूद होते हैं, जिससे ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्य और विकास को समझने में मदद मिल सकती है।
( द कन्वरसेशन )