कानपुर के चौबेपुर थाने में विकास दुबे के ख़िलाफ़ कुल साठ मुक़दमे दर्ज हैं. इनमें हत्या और हत्या के प्रयास जैसे कई गंभीर मुक़दमे भी शामिल हैं.
कानपुर के पुलिस महानिरीक्षक मोहित अग्रवाल ने बताया कि जिस मामले में पुलिस विकास दुबे के यहां दबिश डालने गई थी वह भी हत्या से जुड़ा मामला था और विकास दुबे उसमें नामज़द हैं.
चौबेपुर थाने में दर्ज मुक़दमों के आधार पर कहा जा सकता है कि पिछले क़रीब तीन दशक से अपराध की दुनिया से विकास दुबे का नाम जुड़ा हुआ है. कई बार उनकी गिरफ़्तारी भी हुई लेकिन अब तक किसी मामले में सज़ा नहीं मिल सकी है.
कानपुर में “साल 2001 में विकास दुबे पर थाने के अंदर घुसकर बीजेपी के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या करने का आरोप लगा. संतोष शुक्ला की हत्या एक हाई प्रोफ़ाइल हत्या थी. इतनी बड़ी वारदात होने के बाद भी किसी पुलिस वाले ने विकास के ख़िलाफ़ गवाही नहीं दी. कोर्ट में विकास दुबे के ख़िलाफ़ कोई साक्ष्य नहीं पेश किया जा सका जिसकी वजह से उसे छोड़ दिया गया.”
इसके अलावा साल 2000 में कानपुर के शिवली थाना क्षेत्र स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या के मामले में भी विकास दुबे को नामज़द किया गया था.
थाने में दर्ज रिपोर्ट्स के मुताबिक़, साल 2000 में ही विकास दुबे के ऊपर रामबाबू यादव की हत्या के मामले में साज़िश रचने का आरोप भी लगा था. बताया जा रहा है कि यह साज़िश विकास ने जेल से ही रची थी.
साल 2004 में एक केबल व्यवसायी की हत्या में भी विकास दुबे का नाम सामने आया था. पुलिस के मुताबिक़, इनमें से कई मामलों में विकास दुबे जेल जा चुके हैं लेकिन ज़मानत पर लगातार छूटते रहे. साल 2013 में भी विकास दुबे का नाम हत्या के एक मामले में सामने आया था. यही नहीं, साल 2018 में विकास दुबे पर अपने चचेरे भाई अनुराग पर भी जानलेवा हमला कराने का आरोप लगा था जिसमें अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई थी.
सूत्र के अनुसार हर राजनीतिक दल में विकास दुबे की पैठ है और यही वजह है कि आज तक उन्हें नहीं पकड़ा गया. पकड़ा भी गया तो कुछ ही दिनों में जेल से बाहर आ गया.
विकास दुबे मूल रूप से कानपुर में बिठूर के शिवली थाना क्षेत्र के बिकरू गांव के रहने वाले हैं. गांव में उन्होंने अपना घर क़िले जैसा बना रखा है. स्थानीय लोगों के मुताबिक, बिना उनकी मर्ज़ी के घर के भीतर कोई जा नहीं सकता है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि साल 2002 में जब राज्य में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी, उस वक़्त विकास दुबे की तूती बोलती थी. बिकरू गांव के ही रहने वाले एक शख़्स नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने न सिर्फ़ अपराध की दुनिया में अपना दबदबा क़ायम किया बल्कि पैसा भी ख़ूब कमाया.
चौबेपुर थाने में दर्ज तमाम मामले अवैध तरीक़े से ज़मीन की ख़रीद-फ़रोख़्त से भी जुड़े हैं. इन्हीं की बदौलत विकास दुबे ने कथित तौर पर ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से करोड़ों रुपए की संपत्ति बनाई है. बिठूर में ही उनके कुछ स्कूल और कॉलेज भी चलते हैं.
बिकरू गांव के लोग बताते हैं कि न सिर्फ़ अपने गांव में बल्कि आस-पास के गांवों में भी विकास का दबदबा क़ायम था. ज़िला पंचायत और कई गांवों के ग्राम प्रधान के चुनाव में विकास दुबे की पसंद और नापसंद काफ़ी मायने रखती रही है.
गांव के एक बुज़ुर्ग बताते हैं, “बिकरू गांव में पिछले 15 साल से निर्विरोध प्रधान बन रहे हैं जबकि विकास दुबे के परिवार के ही लोग पिछले पंद्रह साल से ज़िला पंचायत सदस्य का भी चुनाव जीत रहे हैं.”
गाँव वालों के मुताबिक़, विकास दुबे के पिता किसान हैं और ये कुल तीन भाई है जिनमें एक भाई की क़रीब आठ साल पहले हत्या कर दी गई थी. भाइयों में विकास दुबे सबसे बड़े हैं. विकास की पत्नी ऋचा दुबे फ़िलहाल ज़िला पंचायत सदस्य हैं.
बकरू गांव के ही रहने वाले एक व्यक्ति नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि विकास दुबे के ख़िलाफ़ थाने में चाहे जितने मुक़दमे दर्ज हों लेकिन गांव में उनकी बुराई करने वाला कोई नहीं मिलेगा और न ही उनके ख़िलाफ़ कोई ग़वाही देता है.
उनके मुताबिक़, साल 2000 के आस-पास शिवली के तत्कालीन नगर पंचायत के चेयरमैन लल्लन वाजपेयी से विवाद के बाद विकास दुबे ने अपराध की दुनिया में क़दम रखा.
गाँव वालों के मुताबिक़, विकास दुबे के दो बेटे हैं जिनमें से एक इंग्लैंड में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है जबकि दूसरा बेटा कानपुर में ही रहकर पढ़ाई कर रहा है.