1.6 लाख आशा कार्यकर्ताओं ने लौटने वाले 30.43 लाख प्रवासियों का पता लगाया
बहराइच (हुजुरपुर, ब्लाक, निबुही कला गांव) के रहने वाले 30 वर्षीय सुरेश कुमार मुंबई में एक जूस की दूकान पर काम करते थे। वह मई, 2020 के आरंभ में एक ट्रक में अन्य प्रवासी मजदूरों के साथ पांच दिनों की यात्रा करके घर लौटे। जैसे ही सुरेश घर पहुंचे तो स्थानीय आशा कार्यकर्ता चंद्र प्रभा ने उनसे मुलाकात की और उसके विवरणों को रिकॉर्ड किया। उन्होंने बहराइच जिले की स्थानीय त्वरित अनुक्रिया टीम (आरआरटी) को जानकारी दी जिन्होंने सुरेश को घर पर क्वारांटाइन करने का सुझाव दिया। चंद्र प्रभा ने उसके परिवार के सदस्यों की भी काउंसिलिंग की और विस्तार से समझाया कि घर पर क्वारांटाइन करने के दौरान क्या कदम उठाये जाने चाहिए। वह नियमित रूप से अनुवर्ती कार्रवाई के लिए उसके घर जाती रहीं और उसके परिवार के संपर्क में रहीं। उनकी सर्तकता, प्रेरणादायी कौशलों एवं सहायता ने यह सुनिश्चित किया कि जैसे ही सुरेश में इसके लक्षण दिखाई पड़ने लगे, उन्हें तत्काल चितौरा के समुदाय स्वास्थ्य केंद्र भेज दिया गया जो एक प्राधिकृत कोविड देखभाल सुविधा केंद्र है। चंद्र प्रभा ने यह भी सुनिश्चित किया कि सुरेश के परिवार के सदस्यों तथा उसके सहयोगी प्रवासियों को कोविड की जांच के लिए रेफर किया जाए।
देश में कोविड-19 के मामलों में तेज बढोत्तरी एवं हॉटस्पॉट क्षेत्रों से प्रवासी आबादी के प्रवेश के साथ, उत्तर प्रदेश (उप्र) की बड़ी चुनौतियों में एक लौटने वालों की स्वास्थ्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना एवं इसकी ग्रामीण आबादी में इस बीमारी के प्रसार को रोकना था। आशा कार्यकर्ताओं ने इस संकट के दौरान कोविड-19 प्रबंधन की सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इस विशाल प्रक्रिया में उत्तर प्रदेश की 1.6 लाख आशा कार्यकर्ताओं ने दो चरणों में-पहले चरण में 11.24 लाख एवं दूसरे चरण में 19.19 लाख-लौटने वाले लगभग 30.43 लाख प्रवासियों का पता लगाया। उन्होंने कौंटैक्ट ट्रेसिंग एवं समुदाय स्तर निगरानी में सहायता की। आशा कार्यकर्ताओं ने न केवल लक्षणों वाले 7965 व्यक्तियों का पता लगाया बल्कि नियमित रूप से उनके स्वास्थ्य की स्थिति पर नजर रखी। उन्होंने लौटने वाले 2232 व्यक्तियों से नमूना संग्रह में सहायता की जिसमें से 203 पोजिटिव पाए गए तथा कोविड स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के लिए रेफर किए गए। ग्राम प्रधान के तहत सभी गांवों में निगरानी समितियों का गठन किया गया है। समिति के सदस्य/स्वयंसेवी कार्यकर्ता आशा कार्यकर्ताओं के संपर्क में रह कर पहरेदारी करते हैं और उन्हें गांव में प्रवासियों के बारे में जानकारी मुहैया कराते हैं जो इसके बाद प्रवासियों से जुड़े अनुवर्ती कार्रवाइयों में उनकी सहायता करती हैं। आशा कार्यकर्ताओं ने बचाव संबंधी उपायों जैसेकि साबुन और पानी के साथ नियमित रूप से हाथ धोने, सार्वजनिक स्थान पर जाने से पहले मास्क लगाने के महत्व एवं समुचित सामाजिक दूरी बनाये रखने आदि के बारे में समुदायों को संवेदनशील बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। उनकी कोशिशों के परिणामस्वरूप, अनिवार्य एवं गैर अनिवार्य स्वास्थ्य सेवाओं तथा इन्हें कैसे प्राप्त किया जाए, के बारे में काफी जागरुकता आ गई है। जब वे अपनी ड्यूटी पर जाती हैं तो आशा कार्यकर्ताओं को मास्क तथा साबुन/सैनिटाइजर जैसी मूलभूत प्रोटेक्टिव गियर उपलब्ध कराये जाते हैं।
आशा कार्यकर्ताओं ने समुदाय क्वारांटाइन केंद्रों के विकास, आंगनवाड़ी केंद्रों तथा प्राथमिक विद्यालयों के निर्माण में पंचायती राज विभाग की सहायता की है। उन्होंने इसके बारे में जागरूकता फैलाने में मदद करने के जरिये समुदाय स्तर पर आरोग्य सेतु ऐप का अनुपालन किया जाना सुनिश्चित किया है।
गैर-कोविड अनिवार्य सेवाओं में आशा कार्यकर्ताओं का योगदान असाधारण रहा है। आयुष्मान भारत-स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों में, आशा कार्यकर्ता सभी व्यक्तियों की लाइन लिस्टिंग, जोखिम आकलन और हाइपरटेंशन, मधुमेह, तीन प्रकार के कैंसरों (ओरल, ब्रेस्ट एवं सरवाइकल कैंसरों), तपेदिक और कुष्ठ जैसी पुरानी बीमारियों की स्क्रीनिंग के लिए प्रेरित करने में योगदान दे रही हैं। वे प्रजनन मातृ नवजात और शिशु स्वास्थ्य (आरएमएनसीएच) सेवाएं उपलब्ध कराने में, जो लॉकडाउन कदमों तथा सामाजिक दूरी बनाये रखने की आवश्यकता के कारण प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुई थीं, भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। उन्होंने इन सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जागरूकता का प्रसार किया है और लोगों तक इसकी सुविधा पहुंचाने में सहायता की है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन देश के अधिकांश हिस्सों के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में लगभग 10 लाख आशा कार्यकर्ताओं की सहायता करता है। इसका लगभग छठा हिस्सा (1.67 लाख) उत्तर प्रदेश से संबंधित है।