इस चश्मे को कुछ इस तरह से बनाया गया है, जिससे स्वास्थ्यकर्मियों को खतरनाक एरोसॉल के साथ-साथ अन्य निलंबित कणों से बचाया जा सकता है
डॉ सुरेंदर एस. सैनी : “इस सुरक्षात्मक चश्मे का उपयोग स्वास्थ्यकर्मियों के अलावा आम लोग भी कर सकते हैं”
कोविड-19 से लड़ रहे अग्रिम पंक्ति में तैनात स्वास्थ्यकर्मियों को संक्रमण से बचाने के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) की माँग बढ़ रही है। इस दिशा में कार्य करते हुए केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआईओ), चंडीगढ़ के शोधकर्ताओं ने ऐसा सुरक्षात्मक चश्मा बनाने की तकनीक विकसित की है, जो कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ रहे स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिस, सफाई कर्मचारियों और आम लोगों को संक्रमण से बचाने में मददगार हो सकता है।
पलकों के भीतर आँख की पुतलियों को चिकनाई देने वाली नेत्र श्लेषमला झिल्ली (Conjunctiva), शरीर में एकमात्र आवरण रहित श्लेष्म (Mucous) झिल्ली होती है। आँखें खुलती हैं तो नेत्र श्लेषमला झिल्ली बाहरी वातावरण के संपर्क में आती है, जो अनजाने में वायरस के प्रवेश का कारण बन सकती है। सीएसआईओ के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह सुरक्षात्मक चश्मा इस चुनौती से लड़ने में मदद कर सकता है। इस चश्मे को कुछ इस तरह से बनाया गया है, जिससे स्वास्थ्यकर्मियों को खतरनाक एरोसॉल के साथ-साथ अन्य निलंबित कणों से बचाया जा सकता है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की चंडीगढ़ स्थित प्रयोगशाला सीएसआईओ द्वारा इस चश्मे के बड़े पैमाने पर व्यावसायिक उत्पादन के लिए इसकी तकनीक हाल में चंडीगढ़ की कंपनी सार्क इंडस्ट्रीज को सौंपी गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि महामारी की मौजूदा स्थिति ने प्रभावी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) की जरूरत की ओर ध्यान आकर्षित किया है, ताकि स्वास्थ्यकर्मियों, मरीजों और अनजाने में संक्रमित होने वाले अस्पताल के आंगतुकों को संक्रमण से बचाया जा सके।
इस सुरक्षात्मक चश्मे में लचीला फ्रेम लगाया गया है, ताकि यह त्वचा के साथ प्रभावी सीलिंग के रूप में आँखों के ऊपर एक अवरोधक के रूप में कार्य कर सके। आँखों के आसपास की त्वचा को कवर करने में सक्षम इस चश्मे के फ्रेम को कुछ इस तरह डिजाइन किया गया है, जिससे इसमें प्रिस्क्रिप्शन ग्लास भी लगा सकते हैं। इस चश्मे में मजबूत पॉलीकार्बोनेट लेंस और पहनने में आसानी के लिए इलास्टिक पट्टे का उपयोग किया गया है।
सीएसआईओ के ऑप्टिकल डिवाइसेज ऐंड सिस्टम्स विभाग के प्रमुख डॉ विनोद कराड़ के नेतृत्व में संस्थान के शोधकर्ताओं की एक टीम ने मिलकर यह तकनीक विकसित की है। इस चश्मे की तकनीक को विकसित करने के लिए उद्योगों और संबंधित हितधारकों के सुझावों को भी शामिल किया गया है।
परियोजना से जुड़ीं प्रमुख शोधकर्ता डॉ नेहा खत्री ने बताया कि “इस चश्मे को विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में उपयोग किया जा सकता है।” सीएसआईओ में बिजनेस इनिशिएटिव्स ऐंड प्रोजेक्ट प्लानिंग के प्रमुख डॉ सुरेंदर एस. सैनी ने बताया कि “इस सुरक्षात्मक चश्मे का उपयोग स्वास्थ्यकर्मियों के अलावा आम लोग भी कर सकते हैं।”
सार्क इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग पार्टनर अनिल सहली ने कहा है कि कंपनी इस चश्मे की मार्किटिंग विभिन्न वर्गों के उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर करेगी, जिसमें स्वास्थ्यकर्मियों के अलावा पुलिसकर्मी, सार्वजनिक कार्यालयों में कार्यरत कर्मचारी और आम लोग शामिल हैं।
इस परियोजना में डॉ कराड़ और डॉ खत्री के अलावा डॉ संजीव सोनी, डॉ अमित एल. शर्मा, डॉ मुकेश कुमार और विनोद मिश्रा शामिल हैं।