पश्चिम बंगाल में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है.
ममता बनर्जी सरकार के दावों के बावजूद कोरोना के मामले में राजधानी कोलकाता लगभग रोज़ाना नए रिकॉर्ड बना रहा है.
चिराग़ तले अंधेरा की कहावत को चरितार्थ करते हुए महानगर में मरीज़ों की लगातार बढ़ती तादाद ने स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है. फ़िज़िकल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं होने की शिकायतें भी बढ़ रही हैं.
अब स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी चेतावनी दी है कि कोलकाता दिल्ली की तरह एक ऐसे कोरोना बम पर बैठा है, जिसमें कभी भी विस्फोट हो सकता है.
इस बीच, कोलकाता में कोरोना संक्रमण से मरे लोगों के शवों के साथ कथित दुर्व्यवहार के मुद्दे पर बढ़े विवाद के बाद सरकार ने कहा है कि अब सिर्फ़ उन मरीज़ों की मौत के बाद ही कोरोना की जाँच की जाएगी जो इसके लक्षण के साथ अस्पतालों में भर्ती हुए थे.
सोमवार शाम को ही अस्पतालों को यह निर्देश दे दिया गया है. पहले तमाम मरीज़ों की मौत के बाद उनकी कोरोना जाँच की जाती थी.
पश्चिम बंगाल में कोरोना संक्रमितों का आँकड़ा 11 हज़ार के पार (11,494) पहुँच गया है.
मरने वालों की तादाद भी 485 तक पहुंच गई है और इसमें लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है.
बेधड़क घूमते लोग, बढ़ते कंटेनमेंट ज़ोन
कोलकाता के प्रमुख बाज़ारों और शापिंग मॉल्स में उमड़ने वाली भीड़ से साफ़ है कि आम लोगों में शायद कोरोना का आतंक ही ख़त्म हो गया है. वहीं, नगर विकास मंत्री का कहना है कि बाज़ारों से ही संक्रमण फैल रहा है इसलिए लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए.
प्रशासन की ओर से महानगर के कई इलाक़ों में लाउडस्पीकरों के ज़रिए जागरुकता अभियान भी चलाया जा रहा है. लेकिन आँकड़ों से स्पष्ट है कि इस अभियान का कोई असर नहीं हो रहा है.
पहले पूरे राज्य में 844 कंटेनमेंट ज़ोन थे जो बीते 10 दिनों में बढ़ कर 1806 तक पहुँच गए हैं. इसी तरह कोलकाता में कंटेनमेंट ज़ोन्स की तादाद लगभग तीन गुना बढ़ कर 351 से 1009 हो गई है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, “हम जागरुकता से ही संक्रमण पर अंकुश लगा सकते हैं. लोगों को पहले से ज़्यादा ऐहतियात बरतते हुए भीड़-भाड़ से बचना होगा.”
मुख्यमंत्री की दलील है कि यहाँ संक्रमितों की तादाद के मुक़ाबले स्वस्थ होने वाले लोगों की तादाद पहली बार बढ़ी है. इससे उम्मीद की नई किरण नज़र आई है.
15 जून की शाम तक चौबीस घंटे के दौरान 407 नए मरीज़ सामने आए हैं. स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि राज्य में संक्रमितों के स्वस्थ होने की दर 47.70 प्रतिशत है. लेकिन राज्य के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कोलकाता एक ऐसे कोरोना बम पर बैठा है जो कभी भी फट सकता है.
बिखर सकता है स्वास्थ्य तंत्र
ऐसे में दूसरे महानगरों की तरह यहाँ भी स्वास्थ्य का आधारभूत ढांचा भरभरा सकता है और यह महानगर दिल्ली को भी पीछे छोड़ सकता है. वैसे पहले भी राज्य में स्वास्थ्य का आधारभूत ढांचा ज़्यादा मज़बूत नहीं रहा है.
हर साल भारी तादाद में इलाज के लिए लोग दक्षिण भारतीय शहरों का रुख़ करते रहे हैं. लेकिन कोरोना और लॉकडाउन की वजह से अब ऐसे लोग बाहर नहीं जा रहे हैं.
एक निजी अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर सुरेश रामासुब्बन कहते हैं, “पूरे महानगर में ऑक्सीजन की सुविधा वाले बेड की तादाद महज़ कुछ हज़ार हैं. अगर संक्रमितों की तादाद इसी दर से बढ़ती रही तो एक सप्ताह बाद हमारे पास कोई बेड ख़ाली नहीं होगा.”
एक अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर. श्रावणी पाल कहती हैं, “महानगर के निजी अस्पतालों में भी कोविड-19 के मरीज़ों की तादाद तेज़ी से बढ़ रही है. यह एक अभूतपूर्व स्थिति है. डर की वजह से ऐसे अस्पतालों के कर्मचारी भी काम नहीं करना चाहते. अभी तो उनको समझा-बुझा कर काम कराया जा रहा है. लेकिन ऐसा आख़िर कब तक चलेगा? बाहरी राज्यों की नर्सों के सामूहिक इस्तीफे़ ने परिस्थिति को और जटिल बना दिया है.”