कैंसर की दवा के विकास से जुड़े अपने अध्ययन में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटिग्रेटिव मेडिसिन (आईआईआईएम), जम्मू के शोधकर्ताओं को एक महत्वपूर्ण सफलता मिली है। अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक ऐसे तत्व का पता लगाया है, जिसमें अग्नाशय के कैंसर से संबंधित शुरुआती अध्ययनों में कैंसर-रोधी गुण देखे गए हैं।
कैंसर-रोधी नई रासायनिक इकाई (New Chemical Entity) के रूप में पहचाने गए इस तत्व को सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) के न्यू ड्रग्स डिविजन से इन्वेस्टिगेशनल न्यू ड्रग के रूप में मंजूरी मिली है। यह मंजूरी मिलने के बाद अग्नाशय के कैंसर से पीड़ित मरीजोंपर आईआईआईएम-290 नामक इस तत्व के चिकित्सीय परीक्षणके रास्ते खुल गए हैं। इस प्रस्तावित चिकित्सीय परीक्षण का उद्देश्य अग्नाशय के कैंसर से ग्रस्त रोगियों में इस तत्व के सुरक्षित उपयोग, सहनशीलता और जोखिम का आकलन करना है।
पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले सफेद देवदार (Dysoxylum binectariferum) की पत्तियों से इस दवा उम्मीदवार तत्व को प्राप्त किया गया है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) से संबद्ध आईआईआईएम के निदेशक डॉ राम विश्वकर्मा ने कहा है कि “कैंसर सेल लाइन पैनल एनसीआई-60 और चिकित्सकीय रूप से मान्य कैंसर में शामिल प्रोटीन काइनेज के खिलाफ कैंसर-रोधी परीक्षण में प्राकृतिक रूप से प्राप्त तत्व रोहिटुकीन (Rohitukine) को प्रभावी पाया गया है।” एनसीआई-60कैंसर सेल लाइन पैनल संभावितकैंसर-रोधी गतिविधि का पता लगाने के लिएयौगिकों की स्क्रीनिंग के लिए उपयोग की जाने वाली मानव कैंसर सेल (कोशिका)लाइनों का एक समूह है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने फाइटोकेमिकल परीक्षण किए हैं।आईआईआईएम के शोधकर्ता संदीप भराटे ने कहा है कि “चिकित्सीय परीक्षण के लिए एनिमल मॉडल्स में इस तत्व की कैंसर-रोधी गतिविधि पर्याप्त नहीं थी। इसीलिए, प्राकृतिक रूप से प्राप्त इस तत्व में संशोधन करके कुछ नई रासायनिक इकाइयां प्राप्त की गई हैं।” इन रासायनिक इकाइयों का परीक्षण प्रोटीन काइनेज पर किया गया है। यह प्रोटीन मनुष्य के ऊतकों में पाया जाता है और कैंसरग्रस्त ऊतकों में इस प्रोटीन की मात्रा सामान्य से अधिक पायी जाती है। काइनेज को वास्तव में कैंसर के प्रसार के लिए जिम्मेदार माना जाता है। शोधकर्ताओं ने जिस दवा उम्मीदवारतत्व को अलग किया है, वह काइनेज को बाधित करने के साथ-साथउसकी सघनता को कम करनेमें भी प्रभावी पाया गया है।
डॉ शेखर सी. मांडे, महानिदेशक, सीएसआईआर ने इस उपलब्धि पर आईआईआईएम के शोधकर्ता संदीप भराटे, सोनाली भराटे, दिलीप मोंढे, शशि भूषण और सुमित गांधी की सराहना की है, जो डॉ राम विश्वकर्मा के नेतृत्व में इस अध्ययन में शामिल थे। इन शोधकर्ताओं ने अग्नाशय के कैंसर के खिलाफ चिकित्सीय परीक्षणों के लिए विनियामक अनुमोदन प्राप्त करने से पहले करीब एक दशक तक अनुसंधान किया है।
अग्नाशय का कैंसर दुनिया के सबसे आम कैंसर रूपों में 12वें स्थान पर है, लेकिन यह कैंसर से होने वाली मौतों का चौथा प्रमुख कारण है। भारत में अग्नाशय के कैंसर की दर प्रति एक लाख पुरुषों पर 0.5-2.4 और प्रति एक लाख महिलाओं पर 0.2-1.8 है। वैश्विक रूप से, यह सालाना एक लाख से अधिक मौतों का कारण बनता है। इस कैंसर को अनुपचारित कैंसर के प्रकार में से एक माना जाता है, क्योंकि इसका निदान बहुत देर से हो पाता है। अग्नाशय के कैंसर के उपचार के लिए दवाओं की कमी भी एक समस्या है।