आंतरिक समस्याओं से त्रस्त चीन खेल रहा है राष्ट्रवाद का कार्ड
अंतरराष्ट्रीय दबाव ने भी बढ़ाई बीजिंग की परेशानी
मंगलवार दो जून को नॉर्दर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी ने लद्दाख का दौरा किया था और इसके बाद उच्च स्तर पर हुई चर्चा में कुछ बातों पर सहमति बनी है। चीन की सेना का पीछे हटना इस सहमति की पहली शर्त थी। बताते हैं इसके बाद चीन की सेना दो किमी और भारत की सेना भी कुछ पीछे हटी है। सेना मुख्यालय को उम्मीद है 6 जून के बाद चीन की सेना अपने क्षेत्र में लौट जाएंगी।
लद्दाख में भारत और चीन दोनों ने संभाल रखा है मोर्चा सैन्य सूत्रों के अनुसार पिछले महीने पांच मई के आस-पास चीन के सैनिकों ने लद्दाख में और इसके बाद सिक्किम में धुसपैठ और भारतीय सैनिकों के साथ हाथापाई जैसी स्थिति को अंजाम दिया था। बाद में वह (चीन) सिक्किम में शांत हो गए, लेकिन लद्दाख में आक्रमक होने के साथ-साथ संख्या बढ़ाते (इस समय कोई पांच हजार सैनिक और साजो-सामान) चले गए।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारत ने भी जवाबी कार्रवाई में सैनिकों की संख्या, तोपों की तैनाती समेत तमाम निर्णय लेकर जैसे को तैसा संदेश देना शुरू कर दिया। प्योंगयांग शो लेक और गालवां नाला के पास भारतीय सैनिक भी डट गए। इसके बाद दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच की सैन्य डिप्लोमेसी का असर दिखाई देना शुरू हुआ।
मेजर जनरल स्तर के अधिकारियों की बातचीत का नतीजा न निकलने के बाद अब लेफ्टिनेंट जनरल स्तर के सैन्य अधिकारी इसे सुलझाने की कोशिश करेंगे। इसको लेकर वार्ता के करीब 10 दौर हो चुके हैं। इस बार वार्ता की शर्त पहले दोनों देशों की सेनाओं को पीछे ले जाकर चर्चा शुरू करने की रही है।