यूजीसी ने जुलाई में विश्वविद्यालयों में परीक्षाएं कराने को लेकर दिशा निर्देश जारी किए थे. इसके द्वारा
सितंबर, 2020 तक परीक्षाएं आयोजित करानी ज़रूरी है.
परीक्षाएं ऑनलाइन या ऑफ़लाइन (पेन+पेपर) या मिश्रित (ऑनलाइन+ऑफ़लाइन) तरीकों से कराई जाएंगी. मिश्रित तरीके का मतलब है कि जो बच्चे ऑनलाइन परीक्षा के नतीजों से संतुष्ट ना हों तो विश्वविद्यालय उनके लिए ऑफलाइन परीक्षा आयोजित कर सकता है.
जो विद्यार्थी किसी वजह से परीक्षा नहीं दे पाता है उसे विश्वविद्यालय अपनी सुविधानुसार विशेष परीक्षा देने का मौका दे सकता है.
जिन विद्यार्थियों की बैकलॉग है यानी पहले के कुछ पेपर वो पास नहीं कर पाए हैं उनकी भी ऑनलाइन या ऑफ़लाइन या मिश्रित तरीके से परीक्षा ली जाएगी.
कुछ विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन परीक्षाएं आयोजित कराने का तरीका ये होगा कि स्टूडेंट्स को ऑनलाइन प्रश्न पत्र डाउनलोड करना है. प्रश्नों के जवाब लिखकर उत्तर पुस्तिका को अपलोड करके सब्मिट कर देना है. परीक्षा कुल तीन घंटे की होगी. जिसमें एक घंटे का समय डाउनलोड और अपलोड करने के लिए मिलेगा. हालांकि, विश्वविद्यालय दूसरा तरीका भी अपना सकते हैं.
स्टूडेंट्स का कहना है कि पिछले सालों के प्रदर्शन, असाइनमेंट और प्रोजेक्ट के आधार पर अंतिम वर्ष या समेस्टर का मूल्यांकन करना चाहिए ताकि कोरोना महामारी के दौरान उन पर परीक्षा का दबाव ना पड़े.
दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत कई राज्यों ने यूजीसी के दिशानिर्देशों का विरोध किया है. कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को इस संबंध में पत्र भी लिखा है.
महाराष्ट्र में शिवसेना की यूथ विंग युवा सेना ने अंतिम वर्ष की परीक्षाएं कराने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. दिल्ली सरकार ने राज्य विश्वविद्यालयों मे अंतिम वर्ष की परीक्षाएं रद्द कर दी हैं और कहा है कि पुराने सेमिस्टर के प्रदर्शन, इंटरनल असेस्मेंट या अन्य प्रगतिशील तरीकों से स्टूडेंट्स का मूल्यांकन किया जाएगा.
इससे पहले मानव संसाधान विकास (एचआरडी) मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कई ट्वीट करके परीक्षा के महत्व पर ज़ोर दिया था.
ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि किसी भी शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों का शैक्षणिक मूल्यांकन बहुत महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। परीक्षाओं में प्रदर्शन विद्यार्थियों को आत्मविश्वास और संतुष्टि देता है,
— Dr. Ramesh Pokhriyal Nishank (@DrRPNishank) July 11, 2020
उन्होंने लिखा था, “ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि किसी भी शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों का मूल्यांकन महत्वपूर्ण होता है. परीक्षाओं में प्रदर्शन विद्यार्थियों को आत्मविश्वास और संतुष्टि देता है.”
स्टूडेंट्स की एक चिंता सिलेबस का पूरा ना होना भी है. जनवरी से आख़िरी सेमिस्टर शुरू हुआ था और मार्च में कॉलेज बंद कर दिए. अमूमन अंतिम वर्ष की परीक्षाएं मई और जून में होती हैं लेकिन कोरोना वायरस के चलते परीक्षाओं को टाल दिया गया.
इस बीच स्टूडेंट्स का कोर्स अधूरा रह गया. उन्हें सिलेबस की भी ठीक से जानकारी नहीं मिली. ऑनलाइन क्लासेस तो दी गईं लेकिन सभी स्टूडेंट्स तक उनकी पहुंच संभव नहीं हो सकी. परीक्षाएं लेने से पहले तकनीकी पक्ष को मज़बूत करना होगा. डीयू में हाल ही में ऑनलाइन परीक्षाओं को लेकर एक मॉक टेस्ट हुआ था. इसमें स्टूडेंट्स के पास गलत प्रश्न पत्र पहुंच गए और कई बच्चों की आंसर शीट सब्मिट ही नहीं हो पाई.