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विकास दुबे का सुराग पुलिस को अभी तक नहीं मिल सका है.
घटना के एक दिन बाद ही यानी शनिवार को ही पुलिस ने बिकरू गांव को छावनी में तब्दील कर दिया और गांव में किसी भी बाहरी व्यक्ति के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी गई.
दोपहर बाद उनके आलीशान घर में मौजूद लोगों को बाहर निकालकर पूरा मकान ध्वस्त कर दिया गया.
यही नहीं, घर के बाहर खड़ी कई महंगी गाड़ियों को भी नष्ट कर दिया गया. इस ध्वस्तीकरण में उसी जेसीबी मशीन का इस्तेमाल किया गया जिससे गुरुवार रात को विकास दुबे को गिरफ़्तार करने आ रही पुलिस टीम का कथित तौर पर रास्ता रोका गया था.
विकास दुबे का यह पैतृक घर किस वजह से तोड़ा गया, क्या मकान अवैध तरीक़े से बना था, क्या मकान विकास दुबे के ही नाम पर है और उससे पहले उसे कोई क़ानूनी नोटिस दिया गया था, क्या उसे तोड़ने का कोर्ट का कोई आदेश था, मकान तोड़ने का क्या कोई क़ानूनी प्रावधान है, जैसे सवाल उसके बाद से ही उठने शुरू हो गए हैं.
सोशल मीडिया पर भी ऐसे सवालों की झड़ी लगी हुई है और सवाल न सिर्फ़ कानपुर ज़िला प्रशासन और पुलिस से बल्कि सरकार से भी पूछे जा रहे हैं.
मकान तोड़े जाने की वजह जानने के लिए कानपुर के ज़िलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे कोई जानकारी नहीं मिल सकी.
कानपुर मंडल के आयुक्त सुधीर बोबड़े ने इस बारे में सिर्फ़ इतना बताया, “ग्रामसभा की ज़मीन क़ब्ज़ा करने की बात सामने आई है. एसडीएम ने इस बारे में अपनी रिपोर्ट डीएम को दी है. बाक़ी जानकारी रिपोर्ट देखने के बाद ही दी जा सकती है.”
दरअसल, ज़िला प्रशासन के पास इस बात की शायद कोई पुख़्ता वजह भी नहीं है कि मकान को ध्वस्त क्यों किया गया, इसीलिए जवाब देने से अधिकारी कतरा रहे हैं.
क़ानूनी जानकारों की मानें तो क़ानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसमें किसी अभियुक्त या दोषी साबित किए गए अपराधी का घर ध्वस्त किया जाए.
उत्तर प्रदेश में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी डॉक्टर विभूति नारायण राय कहते हैं, “यह तो निहायत ही ग़ैर-ज़िम्मेदाराना हरकत है. ऐसा किसी क़ानून में नहीं लिखा है कि कोई अपराधी है तो आप उसका घर गिरा दीजिए, गाड़ियां तोड़ दीजिए. यहां तक कि अभियुक्त का दोष साबित भी हो जाए तो भी आप ऐसा नहीं कर सकते हैं. आतंकवादी तक के साथ ऐसा बर्ताव नहीं किया जाता है.”
“मेरी जानकारी में तो आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ. हां, कुर्की का आदेश कोर्ट से होता है तो ज़रूर चल संपत्तियां ज़ब्त कर ली जाती हैं. उस स्थिति में कई बार घर की खिड़कियां और दरवाज़े तोड़ दिए जाते हैं क्योंकि अदालत में उन्हें चल संपत्ति दिखा दिया जाता है. उन्हीं की आड़ में कई बार दीवार भी गिरा दी जाती है लेकिन पूरा घर ज़मींदोज़ कर दिया जाए, ऐसी कार्रवाई नहीं की जाती है.”
डॉक्टर राय कहते हैं कि इस मामले में अभी कोई कोर्ट में नहीं गया है लेकिन यदि चला गया तो बहुत गंभीर मामला बन सकता है. उनका कहना है कि निश्चित तौर पर इस कार्रवाई के लिए सरकार की ओर से निर्देश दिए गए होंगे, ज़िला प्रशासन के स्तर पर ऐसा होना संभव नहीं है.
मुठभेड़ की घटना के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ घायल पुलिसकर्मियों से मिलने कानपुर गए थे और उन्होंने अभियुक्तों के ख़िलाफ़ विधिक तरीक़े से सख़्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे लेकिन इस सख़्ती का दायरा कहां तक था, यह स्पष्ट नहीं था.
मुख्यमंत्री ने एडीजी क़ानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार को तब तक कानपुर में ही रहने को कहा है जब तक कि विकास दुबे पुलिस की गिरफ़्त में नहीं आ जाते.
विभूति नारायण राय ही नहीं बल्कि राज्य में तैनात कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि उन्होंने अब तक इस तरह की कार्रवाई नहीं देखी है.
क़ानूनी जानकारों की राय में इसे कहीं से भी विधिक कार्रवाई नहीं कहा जा सकता है.
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